Wednesday, September 4, 2013




दगिड्यो,
आज सब्यों कु परिचय एक यनि चीज़ से कराणु छौं जु हमरा इतिहास मा बड़ी ख़ास जगा रख्दि छै। आज जरुर नै ज़मना क नौन्याल बुल ला कि मि क्य बात कनु छौं पण सच यु च कि यांकु हम सब्यों क वास्ता बडू योगदान रै। वे ज़मना मा यु दिख्ये जा त ब्वै कु हि रूप छौ। मै बात कनु छौं "उरख्यलि" की ज्व कबि हरेक चौकै तिरालि दिख्यान्दि छै, जैमा रोज नाज कुटेंदु छौ अर फेर हम खांदा छाया। आज य विलुप्ति कि कगार पर च, पर मि नि चंदु कि हम यीथैं यन बिसरि जा। एक कविता हमरा पुरण्यों कि ईं सैन्दाण "उरख्यलि" थैं समर्पित।

बिसरी ग्याँ तुम जैथैं, मै व़ी नखरयलि छौं,
जरा पछ्याँणा त भुलों मैथै, मै तुमरि हि उरख्यलि छौं।

तुमरु मेरो साथ साख्यों बिटी च,
ब्वै क हतु कि रुटलि, भैणि राख्यों बिटी च
तुम भूकन कबि रुयाँ त मि ब्वै बणी ग्यों,
मौस्याँण सि चा रयुं भैर, पण मौस्याँण कबि नि रौं,
मि सुप्पु कि दगड्या अर दीदि गंज्यलिक छौं,
पछ्याँण तुमुन मैथै, मै तुमरि हि उर्ख्यलि छौं।

ददि-दाज्यों बारम भुलों बड़ी सज-समाल छै,
धुवै-पुछ्ये कि, रोज कुटे कि होंदि जग्वाल छै,
ब्यो-पगिन्यों बेर मैमु बि रान्दि हल्दयाण छै,
बार-त्योहारों कि वे बगत अहा कनि रस्याँण छै,
पितरों कि सैन्दांण भुलों, मै नाजै औंज्यलि छौं,
पछ्याँण तुमुन मैथै, मै तुमरि हि उर्ख्यलि छौं। 


"बदल्याँ मनखि, बदल्युं समाज"



दगिड्यो,
दानों क गिच्चा बिटी झणी कथ्गा बगत सूणि कि पुरणा जमना क लोग कथु सीधा-सच्चा अर प्यार-प्रेम वला हूंदा छाया। आजै बगतै हालत देखि मिथें पुरण्यों कि वु छ्वीं याद ऐ ग्येनि अर मि वे लोक मा पौंछि गयुं जु मैखुणि बि कल्पना हि च। पण कुच बच्याँ पुरण्यों देखि जरूर विस्वास होंद कि यनु रै होलु। मिथें म्येरू कविता कु विषय मिलि ग्ये अर आप लोखु कि मजबूरि च कि पौढ़न पोडली जु बि लिख्युं।

वुंन मै विस्वास दिलांदु कि भलि लगलि किलै कि आजौ सच च यु।

वे ज़मना मनखि, अब कख गै होला,
बिन भै -बंद छै भयात जौंमा, वु कु रै होला।।

आज कन्फ़णि सि बगत अयूँ च,
भै न भै कु हि मुंड कच्ययूँ च,
प्यार-प्रेमै छ्वीं, छ्वीं हि रै ग्ये,
नातु, धरती -असमान ह्वै ग्ये,
वे ज़मना …………. रै होला।

रुण्या मुख छन, आख्यों अन्स्धरि,
रुन्दा मुलुक छन, डरदि किल्क्वरि,
रिस्ता नातों कि कै नि फिकर अब,
नौनों, बुबा कि रै नि कदर अब,
वे ज़मना …………. रै होला।

गिच्चि सिलीं छन, लग्याँ छन म्वाला,
भिंडी तमसगेर, कम छन बुन्न वला,
अफखुणि अफ़ी सरम करीं च,
मनख्यात झणि कख म्वरीं च,
वे ज़मना …………. रै होला।

लग्युं असगार मुलुक थैं भारी,
रौड़ -बौग कि अयीं बेमारि,
येमा बि खैंचा-खैंच हुईं च,
तू नीस, मै ऐन्च हुईं च,
वे ज़मना …………. रै होला।

यन बि एक बगत छौ होंदो,
कूड़ू चा कैकु बि हो चुंदु,
सब्यों न मिलि कि पटलि मिस्याई,
पण रगड़-बगण होणि नि दयाई,
वे ज़मना …………. रै होला।

कैथैं यिख कसुरबार ठेरोँ अब,
अपड़ू गुठ्यार, क्वी नि भैरौ जब,
अपणों - अपणों मा कनि लडै या,
भितिर- भैर कनि मुंड फ़्वडै या,
वे ज़मना …………. रै होला।

ऐकि क्वी सम्झावदि यूँ थैं,
प्रेमो पाठ पढ़ावदि यूँ थैं,
लडि-भिड़ी क्वी महान नि ह्वै यिख,
हिटलरौ कबि सम्मान नि ह्वै यिख,
वे ज़मना …………. रै होला। 

1 comment:

Unknown said...

bahut sundar bheji ......