दून की जेल में हुई थी 'भारत की खोज'
आधुनिक भारत के निर्माता और देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का देहरादून से नाता बहुत पुराना था। मृत्यु से एक दिन पहले नेहरू देहरादून में ही थे।
पंडित जवाहर लाल नेहरू के बारे में कहा जाता था कि जब वो राष्ट्रीय आन्दोलन के दौरान के गिरफ्तार होते तो अंग्रेजी हुकूमत से कहते कि उन्हें दून की जेल में ही रखा जाय।
राष्ट्रीय आन्दोलन के दौरान नेहरू को सबसे पहले 1932 में देहरादून जेल के वार्ड में रखा गया था। उसके बाद 1933, 1934 और फिर 1941 में उन्हें यहां रखा गया था।
डिस्कवरी ऑफ इंडिया लिखने की प्रेरणा
भारत के लिए पंडित नेहरू की जेल की यह कोठरी इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि नेहरू को अपनी विख्यात पुस्तक ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ लिखने की प्रेरणा यहीं मिली थी और उस पुस्तक के अधिकांश हिस्से इसी कोठरी में लिखे गए थे।
देहरादून की यह जेल इसलिए भी खास है क्योंकि नेहरू की पुत्री इंदिरा गांधी इसी वार्ड में उनसे मिलने आती थी। नेहरू के दोनों नाती राजीव और संजय गांधी देहरादून के ही दून स्कूल में पढ़े थे। वह इन दोनों को मिलने भी देहरादून आते थे। नेहरू की बहन श्रीमती विजयलक्ष्मी पंडित और करीबी रिश्तेदार बीके नेहरू ने देहरादून के राजपुर रोड स्थित अपने घरों पर जीवन की अंतिम सांसें ली थी।
पंडित जवाहर लाल नेहरू के बारे में कहा जाता था कि जब वो राष्ट्रीय आन्दोलन के दौरान के गिरफ्तार होते तो अंग्रेजी हुकूमत से कहते कि उन्हें दून की जेल में ही रखा जाय।
राष्ट्रीय आन्दोलन के दौरान नेहरू को सबसे पहले 1932 में देहरादून जेल के वार्ड में रखा गया था। उसके बाद 1933, 1934 और फिर 1941 में उन्हें यहां रखा गया था।
डिस्कवरी ऑफ इंडिया लिखने की प्रेरणा
भारत के लिए पंडित नेहरू की जेल की यह कोठरी इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि नेहरू को अपनी विख्यात पुस्तक ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ लिखने की प्रेरणा यहीं मिली थी और उस पुस्तक के अधिकांश हिस्से इसी कोठरी में लिखे गए थे।
देहरादून की यह जेल इसलिए भी खास है क्योंकि नेहरू की पुत्री इंदिरा गांधी इसी वार्ड में उनसे मिलने आती थी। नेहरू के दोनों नाती राजीव और संजय गांधी देहरादून के ही दून स्कूल में पढ़े थे। वह इन दोनों को मिलने भी देहरादून आते थे। नेहरू की बहन श्रीमती विजयलक्ष्मी पंडित और करीबी रिश्तेदार बीके नेहरू ने देहरादून के राजपुर रोड स्थित अपने घरों पर जीवन की अंतिम सांसें ली थी।
सौजन्य अमर उजाला
देहरादून की शान है विश्व शांति का यह स्तूप
क्लेमेनटाउन स्थित बुद्घा टेंपल गार्डन में मौजूद यह मोनेस्ट्री बौद्घ मोनेस्ट्री है। यह स्तून रोजाना सुबह नौ बजे से लोगों के खोल दिया जाता है। इस महान स्तूप की ऊंचाई 185 वर्ग फुट और चौड़ाई 100 फुट है।
मुखौटे पर सुंदर कला
यह दुनिया का सबसे बड़ा स्तूप है और यह बौद्घ कला व स्थापत्य कला का शानदार नमूना है। यह स्तूप दो एकड़ में फैले गार्डन से घिरा हुआ है। इसके मुखौटे पर सुंदर कला की गई है। सभी के लाभ और विश्व शांति के लिए इस स्तूप का निर्माण 28 अक्टूबर 2002 में किया गया।सौजन्य अमर उजाला
मुखौटे पर सुंदर कला
यह दुनिया का सबसे बड़ा स्तूप है और यह बौद्घ कला व स्थापत्य कला का शानदार नमूना है। यह स्तूप दो एकड़ में फैले गार्डन से घिरा हुआ है। इसके मुखौटे पर सुंदर कला की गई है। सभी के लाभ और विश्व शांति के लिए इस स्तूप का निर्माण 28 अक्टूबर 2002 में किया गया।सौजन्य अमर उजाला
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