SUNDARGARH IN GHURDAURSYUN A HISTORY OF UTTARAKHAND
HISTORY OF UTTARAKHAND...............
Sundargarh is a one of the biggest garh in uttarakhand but till today sundargarh is not recognized in the bavan garh of garhwal.
surrounded villages sanyu , pipali ,dharkot ,tal , rishi , balbyo , ithuru etc
क्या आप जानते हैं कि राजा घुरदेव दरबार के नाम से घुरदेवस्यूँ(घुडदौडस्यूँ) की पट्टी का नाम है क्योँ कि वे इस पट्टी के कबीलाई राजा थे । इससे पहले वे गुजरात के महसाणा के राजा थे लेकिन मुगलोँ के आक्रमण ने इन्हेँ उत्तराखंड की ओर खदेड दिया था। इनकी पत्नी कैँत्यूरा वँश की राजकुमारी सुन्दरा थी जिनके नाम से राजा घुरदेव दरबार ने घुडदौडस्यूँ मेँ सुंदरगढ़ बनवाया। शँकराचार्य ने इनकी पूरी सेना के नाम के पीछे दरबार कीजगह गुसाईँ की उपाधि देकर घुरदेव के गुसाँई राजपूतोँ का एक नया पन्ना इतिहास में जोड दिया। सुंदरगढ़ आज केवल गढवाली जागरोँ में ही जीवित है। गढ़वाल के बावन गढोँ मेँ अभी तक सुंदरगढ़ का शुमार क्यों नहीं होता इस पर चर्चा होनी बहुत जरुरी है वो भी तब जब यह गढ सबसे बडी पट्टी घुडदौडस्यूँ का है ।
पूर्व में गढ़वाल में हर पट्टी की राजधानी गढ के नाम से पहचानी जाती थी ।700 ईसवी मेँ राजा घुरदेव दरबार जब मुगलोँ से पराजित होकर जबउत्तराखंड मेँ शरण लेने आये तो चौँदकोट मेँ उन्हें शरणमिली। चौँदकोट के कबीलाइयोँ से शक का व्यवहार प्रतीत होते ही राजा घुरदेव दरबार ने वहाँ से प्रस्थान कर दिया और अपने लिये पहाड मेँएक वीरान जगह मेँ शरण लेकर एक गढ का निर्माण कर दिया यह जगह कैंत्युरा शासकों की सीमा के अँतर्गत थी या नहीं अभी तक यह स्पष्ट नहीँ हैँ।
यह भी स्पष्ट नहीं है कि इस जगह को राजा घुरदेव ने कैँत्युरोँ को हराकर प्राप्त किया। इतना जरुर है कि कैँत्यूरा नरेश ने घुरदेव की बहादुरी से प्रभावित होकर अपनी बेटी सुन्दरा के विवाह का प्रस्ताव रखा या दूसरी बात ये भी हो सकती है कि राजा घुरदेव दरबार सुन्दरा की सुन्दरता की चर्चाओँ से मुग्ध होकर कैँत्यूरोँ को परास्त कर सुन्दरा को पाना चाहते थे लेकिन कैँत्यूरा नरेश घुरदेव दरबार केआक्रमण के दौरान ही सब कुछ गुप्तचरोँ की तरफ से जान गये। अपने को हार से बचाने के लिये उन्हेँ राजा घुरदेव की शर्त के अनुसार ही चलना पडा। वैसे भी कैँत्यूरा नरेश राजा घुरदेव से बहुत प्रभावित थे । राजा घुरदेव ने अपने गढ का नाम सुन्दरा के नाम से सुंदरगढ़ रख दिया।
सुंदरगढ़ एक घाटी मेँ दो नहरोँ के बीच मेँ टीलानुमा पहाडी के अँदर बनाया गया। इसकेअँदर जाने के लिये दो सुरंगें आगे की तरफ से और तीन सुरंगें पीछे की तरफ से बनाई गई थी। जनश्रुतियों के अनुसार रानी का राजमहल भी पहाडी के अन्दर ही था जिसका रास्ता भी इन्हीँ सुरंगों से होकर जाता था । 700 ईसवी से 1300 ईसवी तक घुरदेव के बेटोँ, पोतोँ और परपोतोँ ने इस गढ पर राज किया।
1300 ईसवी के आसपास ओम राणा के आक्रमण से घुरदेव के गुसाईयोँ का राजपाट गढ़वाल से समाप्त हो गया था।कहा जाता है कि गुसाईयोँ ने अपनी चतुराई से गुफाओँ के अन्दर बडे बडे पत्थरो कोडाल कर पूरी राणा सेना का रास्ता बंद कर उन्हेँ अन्दर ही मरने पर विवश करदिया और ओम राणा को भी भागते हुए पकड कर मार डाला । जहां पर ओम राणा कोमारा गया वह स्थान आज भी ओमराणा घाट यानी की उमराण घाट के नाम से प्रसिद्ध है। ओम राणा की पत्नी स्वरुपा की भी राजमहल के अन्दर दम घुटने के कारण मौत हो गयी होगी लेकिन जनश्रुतियों और जागरोँ मेँ उसकी राजमहल के अँदर जाकरआत्महत्या करने की बात कही गई हैँ। ऐसा इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि आज भी उस गुफा में बहुत आगे तक जाना संभव नहीं है. क्योंकि राणा की सेना को खतम करने के लिये घुरदेव के गुसाईयोँ ने बडी-बडी चट्टानोँ से सुरँगोँ को बँद कर दिया ताकि राणाओँ की सेना जिँदा राजमहल से बाहर न निकल सके ।
Sundargarh is a one of the biggest garh in uttarakhand but till today sundargarh is not recognized in the bavan garh of garhwal.
surrounded villages sanyu , pipali ,dharkot ,tal , rishi , balbyo , ithuru etc
क्या आप जानते हैं कि राजा घुरदेव दरबार के नाम से घुरदेवस्यूँ(घुडदौडस्यूँ) की पट्टी का नाम है क्योँ कि वे इस पट्टी के कबीलाई राजा थे । इससे पहले वे गुजरात के महसाणा के राजा थे लेकिन मुगलोँ के आक्रमण ने इन्हेँ उत्तराखंड की ओर खदेड दिया था। इनकी पत्नी कैँत्यूरा वँश की राजकुमारी सुन्दरा थी जिनके नाम से राजा घुरदेव दरबार ने घुडदौडस्यूँ मेँ सुंदरगढ़ बनवाया। शँकराचार्य ने इनकी पूरी सेना के नाम के पीछे दरबार कीजगह गुसाईँ की उपाधि देकर घुरदेव के गुसाँई राजपूतोँ का एक नया पन्ना इतिहास में जोड दिया। सुंदरगढ़ आज केवल गढवाली जागरोँ में ही जीवित है। गढ़वाल के बावन गढोँ मेँ अभी तक सुंदरगढ़ का शुमार क्यों नहीं होता इस पर चर्चा होनी बहुत जरुरी है वो भी तब जब यह गढ सबसे बडी पट्टी घुडदौडस्यूँ का है ।
पूर्व में गढ़वाल में हर पट्टी की राजधानी गढ के नाम से पहचानी जाती थी ।700 ईसवी मेँ राजा घुरदेव दरबार जब मुगलोँ से पराजित होकर जबउत्तराखंड मेँ शरण लेने आये तो चौँदकोट मेँ उन्हें शरणमिली। चौँदकोट के कबीलाइयोँ से शक का व्यवहार प्रतीत होते ही राजा घुरदेव दरबार ने वहाँ से प्रस्थान कर दिया और अपने लिये पहाड मेँएक वीरान जगह मेँ शरण लेकर एक गढ का निर्माण कर दिया यह जगह कैंत्युरा शासकों की सीमा के अँतर्गत थी या नहीं अभी तक यह स्पष्ट नहीँ हैँ।
यह भी स्पष्ट नहीं है कि इस जगह को राजा घुरदेव ने कैँत्युरोँ को हराकर प्राप्त किया। इतना जरुर है कि कैँत्यूरा नरेश ने घुरदेव की बहादुरी से प्रभावित होकर अपनी बेटी सुन्दरा के विवाह का प्रस्ताव रखा या दूसरी बात ये भी हो सकती है कि राजा घुरदेव दरबार सुन्दरा की सुन्दरता की चर्चाओँ से मुग्ध होकर कैँत्यूरोँ को परास्त कर सुन्दरा को पाना चाहते थे लेकिन कैँत्यूरा नरेश घुरदेव दरबार केआक्रमण के दौरान ही सब कुछ गुप्तचरोँ की तरफ से जान गये। अपने को हार से बचाने के लिये उन्हेँ राजा घुरदेव की शर्त के अनुसार ही चलना पडा। वैसे भी कैँत्यूरा नरेश राजा घुरदेव से बहुत प्रभावित थे । राजा घुरदेव ने अपने गढ का नाम सुन्दरा के नाम से सुंदरगढ़ रख दिया।
सुंदरगढ़ एक घाटी मेँ दो नहरोँ के बीच मेँ टीलानुमा पहाडी के अँदर बनाया गया। इसकेअँदर जाने के लिये दो सुरंगें आगे की तरफ से और तीन सुरंगें पीछे की तरफ से बनाई गई थी। जनश्रुतियों के अनुसार रानी का राजमहल भी पहाडी के अन्दर ही था जिसका रास्ता भी इन्हीँ सुरंगों से होकर जाता था । 700 ईसवी से 1300 ईसवी तक घुरदेव के बेटोँ, पोतोँ और परपोतोँ ने इस गढ पर राज किया।
1300 ईसवी के आसपास ओम राणा के आक्रमण से घुरदेव के गुसाईयोँ का राजपाट गढ़वाल से समाप्त हो गया था।कहा जाता है कि गुसाईयोँ ने अपनी चतुराई से गुफाओँ के अन्दर बडे बडे पत्थरो कोडाल कर पूरी राणा सेना का रास्ता बंद कर उन्हेँ अन्दर ही मरने पर विवश करदिया और ओम राणा को भी भागते हुए पकड कर मार डाला । जहां पर ओम राणा कोमारा गया वह स्थान आज भी ओमराणा घाट यानी की उमराण घाट के नाम से प्रसिद्ध है। ओम राणा की पत्नी स्वरुपा की भी राजमहल के अन्दर दम घुटने के कारण मौत हो गयी होगी लेकिन जनश्रुतियों और जागरोँ मेँ उसकी राजमहल के अँदर जाकरआत्महत्या करने की बात कही गई हैँ। ऐसा इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि आज भी उस गुफा में बहुत आगे तक जाना संभव नहीं है. क्योंकि राणा की सेना को खतम करने के लिये घुरदेव के गुसाईयोँ ने बडी-बडी चट्टानोँ से सुरँगोँ को बँद कर दिया ताकि राणाओँ की सेना जिँदा राजमहल से बाहर न निकल सके ।
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