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कराहते पहाड़ में दौड़ी आई पहाड़ की बेटी : गीता चंदोला
"आपदा पीड़ितों की मदद के लिए दुबई छोड़कर भारत आई पहाड़ की बेटी, आपदा प्रभावित क्षेत्रों में पैदल जाकर बांटी राहत लोगों को दिला रही भरोसा"
(काश हमारे माननीय विधायक भी ऐसा कुछ करते)
परिवार और कारोबार के खातिर राकेश का परिवार करीब चौदह वर्ष पूर्व भारत छोड़कर दुबई में बस गया । अपनी मेहनत व लगन के दम पर राकेश ने अच्छा मुकाम भी हासिल कर लिया । इस पूरे सफर में पत्नी गीता ने हर कदम पर साथ दिया । दो बच्चों के साथ पति और पत्नी की जिंदगी आराम से गुजरने लगी । सरहदों ने भले ही उन्हें मुल्क से दूर कर दिया लेकिन मन में अपनी मातृभूमि के प्रति प्रेम का भाव कभी कम नहीं हुआ । पहाड़ पर आपदा आई तो राकेश और गीता का मन तड़प उठा। अपनों की सलामती की हजार दुआएं मांगी और बिना समय गंवाए गीता सब कुछ छोड़ आपदा से कराह रहे पहाड़ पर मरहम लगाने पहुंच गयी । करीब डेढ़ माह से पहाड़ की यह बेटी उन लोगों के बीच रहकर उनका दुख-दर्द बांट रही है ।
कोटद्वार की गीता का विवाह मला गांव के राकेश चन्दोला के साथ हुआ । चेन्नई में कारोबार कर रहे राकेश शादी के कुछ वर्षों बाद बेहतर भविष्य और कारोबार की संभावनाओं को देखते हुए दुबई चले गए । काम चल निकला तो उन्होंने पत्नी गीता और दोनों बच्चों को भी अपने पास बुला लिया। झर-झर बहते झरने, कल-कल बहती नदियां, चिड़ियों की चहचाहट, ऊंचे पहाड़ों और सीढ़ीदार खेतों के बीच पली-बढ़ी गीता दुबई की शहरी चमक-दमक में रहने लगी । लेकिन उसका मन अब भी पहाड़ के पीछे से उगने वाले सूरज को देखने को मचलता रहता । पिछले साल ऊखीमठ में बादल फटने का समाचार मिला तो गीता अकेले दुबई से भारत पहुंची और आपदा पीड़ितों की मदद के लिए वहां पहुंच गई। एक लाख से ज्यादा की नगद धनराशि देने के साथ ही ऊखीमठ के आपदा प्रभावित क्षेत्रों में घूमकर लोगों को कंबल, राशन और अन्य जरूरत का सामान भी बांटा ।
इस वर्ष जब केदारनाथ में आपदा का समाचार उन तक पहुंचा तो अपनों की सलामती की चिंता फिर सताने लगी । उन्होंने आपदा कंट्रोल रूम में फोन कर जानकारी मांगी तो कोई जवाब नहीं मिला । फेसबुक पर जब उन्हें आपदा की भयावहता का अनुमान लगा तो 26 जून को वह भारत पहुंच गई । एक संस्था के माध्यम से एक लाख रुपये की राहत सामग्री लेकर वह आपदा प्रभावित क्षेत्रों की ओर चल पड़ी । टूटी सड़क, भूस्खलन, नदियों के उफान को पार करते हुए वह पैदल रुद्रप्रयाग के सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्रों तक पहुंच गई ।
ठेठ गढ़वाली में जब वह आपदा में अपना सबकुछ खो चुकी महिलाओं से प्यार के दो बोल बोलती और उन्हें गले लगाती तो भावनाओं का ज्वार आंखों से आंसुओं के रूप में बहने लगता। आपदा प्रभावितों तक मदद न पहुंचने से नाराज गीता दिल्ली गई और एक ट्रक भरकर राशन, कंबल और अन्य जरूरत का सामान लेकर दोबारा आपदा प्रभावित क्षेत्रों की ओर निकली । सड़क बंद होने के कारण वह उन क्षेत्रों तक नहीं पहुंच सकी । स्थानीय लोगों की मदद से खुद कंधे पर सामान लादकर वह गांवों में पहुंची और सामान बांटा ।
इन दिनों देहरादून में रहकर गीता उन क्षेत्रों में मदद पहुंचा रही संस्थाओं के साथ मिलकर काम कर रही है । दुबई में वह देवेंद्र कोरंगा और संजय थापा के साथ मिलकर उत्तराखंड वेलफेयर एसोसिएशन दुबई के तहत उत्तराखंड के लोगों की मदद के लिए काम करती हैं । गीता को इसी वर्ष समाज सेवा के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए महिला दिवस के अवसर पर दुबई में इंटरनेशनल एक्सीलेंस वूमेंस अवॉर्ड और देहरादून में यूथ आईकन अवॉर्ड से सम्मानित भी किया गया है ।
(साभार : दैनिक जनवाणी)
"आपदा पीड़ितों की मदद के लिए दुबई छोड़कर भारत आई पहाड़ की बेटी, आपदा प्रभावित क्षेत्रों में पैदल जाकर बांटी राहत लोगों को दिला रही भरोसा"
(काश हमारे माननीय विधायक भी ऐसा कुछ करते)
परिवार और कारोबार के खातिर राकेश का परिवार करीब चौदह वर्ष पूर्व भारत छोड़कर दुबई में बस गया । अपनी मेहनत व लगन के दम पर राकेश ने अच्छा मुकाम भी हासिल कर लिया । इस पूरे सफर में पत्नी गीता ने हर कदम पर साथ दिया । दो बच्चों के साथ पति और पत्नी की जिंदगी आराम से गुजरने लगी । सरहदों ने भले ही उन्हें मुल्क से दूर कर दिया लेकिन मन में अपनी मातृभूमि के प्रति प्रेम का भाव कभी कम नहीं हुआ । पहाड़ पर आपदा आई तो राकेश और गीता का मन तड़प उठा। अपनों की सलामती की हजार दुआएं मांगी और बिना समय गंवाए गीता सब कुछ छोड़ आपदा से कराह रहे पहाड़ पर मरहम लगाने पहुंच गयी । करीब डेढ़ माह से पहाड़ की यह बेटी उन लोगों के बीच रहकर उनका दुख-दर्द बांट रही है ।
कोटद्वार की गीता का विवाह मला गांव के राकेश चन्दोला के साथ हुआ । चेन्नई में कारोबार कर रहे राकेश शादी के कुछ वर्षों बाद बेहतर भविष्य और कारोबार की संभावनाओं को देखते हुए दुबई चले गए । काम चल निकला तो उन्होंने पत्नी गीता और दोनों बच्चों को भी अपने पास बुला लिया। झर-झर बहते झरने, कल-कल बहती नदियां, चिड़ियों की चहचाहट, ऊंचे पहाड़ों और सीढ़ीदार खेतों के बीच पली-बढ़ी गीता दुबई की शहरी चमक-दमक में रहने लगी । लेकिन उसका मन अब भी पहाड़ के पीछे से उगने वाले सूरज को देखने को मचलता रहता । पिछले साल ऊखीमठ में बादल फटने का समाचार मिला तो गीता अकेले दुबई से भारत पहुंची और आपदा पीड़ितों की मदद के लिए वहां पहुंच गई। एक लाख से ज्यादा की नगद धनराशि देने के साथ ही ऊखीमठ के आपदा प्रभावित क्षेत्रों में घूमकर लोगों को कंबल, राशन और अन्य जरूरत का सामान भी बांटा ।
इस वर्ष जब केदारनाथ में आपदा का समाचार उन तक पहुंचा तो अपनों की सलामती की चिंता फिर सताने लगी । उन्होंने आपदा कंट्रोल रूम में फोन कर जानकारी मांगी तो कोई जवाब नहीं मिला । फेसबुक पर जब उन्हें आपदा की भयावहता का अनुमान लगा तो 26 जून को वह भारत पहुंच गई । एक संस्था के माध्यम से एक लाख रुपये की राहत सामग्री लेकर वह आपदा प्रभावित क्षेत्रों की ओर चल पड़ी । टूटी सड़क, भूस्खलन, नदियों के उफान को पार करते हुए वह पैदल रुद्रप्रयाग के सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्रों तक पहुंच गई ।
ठेठ गढ़वाली में जब वह आपदा में अपना सबकुछ खो चुकी महिलाओं से प्यार के दो बोल बोलती और उन्हें गले लगाती तो भावनाओं का ज्वार आंखों से आंसुओं के रूप में बहने लगता। आपदा प्रभावितों तक मदद न पहुंचने से नाराज गीता दिल्ली गई और एक ट्रक भरकर राशन, कंबल और अन्य जरूरत का सामान लेकर दोबारा आपदा प्रभावित क्षेत्रों की ओर निकली । सड़क बंद होने के कारण वह उन क्षेत्रों तक नहीं पहुंच सकी । स्थानीय लोगों की मदद से खुद कंधे पर सामान लादकर वह गांवों में पहुंची और सामान बांटा ।
इन दिनों देहरादून में रहकर गीता उन क्षेत्रों में मदद पहुंचा रही संस्थाओं के साथ मिलकर काम कर रही है । दुबई में वह देवेंद्र कोरंगा और संजय थापा के साथ मिलकर उत्तराखंड वेलफेयर एसोसिएशन दुबई के तहत उत्तराखंड के लोगों की मदद के लिए काम करती हैं । गीता को इसी वर्ष समाज सेवा के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए महिला दिवस के अवसर पर दुबई में इंटरनेशनल एक्सीलेंस वूमेंस अवॉर्ड और देहरादून में यूथ आईकन अवॉर्ड से सम्मानित भी किया गया है ।
(साभार : दैनिक जनवाणी)
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